संसद का मूलभूत कार्य विधियों को बनाना है। सभी विधायी प्रस्ताव विधेयकों के रूप में संसद के सामने लाने होते हैं। एक विधेयक प्रारूप में परिनियम होता है और वह तब तक विधि नहीं बन सकता जब तक कि उसे संसद की दोनों सभाओं का अनुमोदन और भारत के राष्ट्रपति की अनुमति न मिल जाए। विधान संबंधी कार्यवाही विधेयक के संसद की किसी भी सभा में पुर:स्थापित किए जाने से आरंभ होती है। विधेयक किसी मंत्री या गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुर:स्थापित किया जा सकता है। मंत्री द्वारा पुर:स्थापित किए जाने पर विधेयक सरकारी विधेयक और गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुर:स्थापित किए जाने पर गैर-सरकारी विधेयक कहलाता है। विधेयक को स्वीकृति हेतु राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व संसद की प्रत्येक सभा अर्थात लोक सभा और राज्य सभा द्वारा तीन बार...
प्रथम वाचन प्रथम वाचन (एक) सभा में विधेयक पुर:स्थापित करने हेतु अनुमति के लिए प्रस्ताव जिसे स्वीकार करने के संबंध में विधेयक पुर:स्थापित किया गया है, अथवा (दो) विधेयक के आरंभ होने और अन्य सभा द्वारा पारित किए, अन्य द्वारा पारित विधेयक को सभा पटल पर रखे जाने की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है। द्वितीय वाचन द्वितीय वाचन में दो प्रक्रम हैं। “पहले प्रक्रम” में विधेयक के सिद्धांतों और निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रस्तावों पर सामान्यत: इनके उपबंधों पर चर्चा होती है कि विधेयक पर विचार किया जाए, अथवा विधेयक को सभा की प्रवर समिति के पास भेजा जाए; अथवा विधेयक को अन्य सभा की सहमति से सभाओं की संयुक्त समिति के पास भेजा जाए; अथवा विधेयक को संबंधित विषय पर राय लेने के उद्देश्य से परिचालित किया जाए। ‘दूस...
और पढ़ेंवर्ष 1993 में विभाग से संबंधित 17 स्थायी समितियों के गठन के पश्चात भारतीय संसद के इतिहास में नए युग का सूत्रपात हुआ। अब, स्थायी समितियों की संख्या को 17 से बढ़ाकर 24 कर दिया गया है। 8 समितियां राज्य सभा के सभापति के निदेश से कार्य करती हैं जबकि 16 समितियां लोक सभा अध्यक्ष के निदेश से कार्य करती हैं। राज्य सभा के सभापति अथवा लोक सभा अध्यक्ष, जैसी भी स्थिति हो, द्वारा किसी भी सभा में पुर:स्थापित ऐसे विधेयकों की जांच और इस संबंध में प्रतिवेदन प्रस्तुत करना इन समितियों का महत्वपूर्ण कार्य है। स्थायी समितियों के प्रतिवेदनों का प्रत्ययकारी महत्व होता है। यदि सरकार समिति की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो वह विधेयक पर विचार किए जाने के प्रक्रम में सरकारी संशोधन प्रस्तुत कर सकती है अथवा स्थाय...
और पढ़ेंयदि कोई विधेयक प्रवर अथवा संयुक्त समिति को सौंपा जाता है, तो समिति सभा के समान विधेयक पर खंडवार विचार करती है। समिति के सदस्य विभिन्न खंडों पर संशोधन प्रस्ताव कर सकते हैं। सभा में प्रवर अथवा संयुक्त समिति का प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाने के पश्चात विधेयक के प्रभारी सदस्य द्वारा सामान्यत: प्रवर समिति अथवा संयुक्त समिति, जैसी भी स्थिति हो, के प्रतिवेदन के अनुसार सभा में विधेयक पर विचार करने हेतु प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है। किसी धन विधेयक अथवा वित्त विधेयक को, जिसमें किसी विधेयक को धन विधेयक बनाने संबंधी कोई प्रावधान अंतर्विष्ट हों, किसी भी सभा की संयुक्त समिति के पास नहीं भेजा जा सकता।...
और पढ़ेंकोई विधेयक संसद की किसी की सभा में पुर:स्थापित किया जा सकता है। तथापि धन विधेयक राज्य सभा में पुर:स्थापित नहीं किया जा सकता है। इसे राष्ट्रपति की लोक सभा में पुर:स्थापित करने संबंधी पूर्व सिफारिश के साथ केवल लोक सभा में पुर:स्थापित किया जा सकता है। कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं यदि इस बारे में कोई प्रश्न उठता है तो इस संबंध में अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा। राज्य सभा के लिए, लोक सभा द्वारा पारित और पारेषित किसी धन विधेयक को उसकी प्राप्ति के 14 दिनों के अंदर वापस भेजना अनिवार्य है। राज्य सभा पारेषित धन विधेयक को सिफारिशों के साथ अथवा बिना सिफारिश के वापस भेज सकती है। लोक सभा, राज्य सभा की सभी अथवा किसी सिफारिश को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है। तथापि, यदि राज्य सभा किसी धन विधेय...
और पढ़ेंसंविधान ने संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति दी है। संविधान संशोधन विधेयक, संसद की किसी भी सभा में पुर:स्थापित किया जा सकता है। जबकि संविधान संशोधन विधेयक के पुर:स्थापन हेतु प्रस्तावों को सामान्य बहुमत, सभा के कुल सदस्यों के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से स्वीकृत किया जाता है और इन विधेयकों पर विचार करने और इन्हें पारित करने के लिए प्रभावी खंडों तथा प्रस्तावों को स्वीकृत करने हेतु मतदान आवश्यक होता है। संविधान के अनुच्छेद 368(2) के परंतुक सूचीबद्ध महत्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित संविधान संशोधन विधेयकों को संसद की सभाओं द्वारा पारित किए जाने के बाद, कम से कम आधे राज्य विधान मंडलों द्वारा इसका अनुसमर्थन किया जाना आवश्यक है।...
और पढ़ेंसंविधान के अनुच्छेद 108(1) में यह उपबंध है कि जब किसी सभा द्वारा पारित किसी विधेयक, (धन विधेयक अथवा संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक को छोड़कर) को अन्य सभा द्वारा अस्वीकार किए जाने या विधेयक में किए गए संशोधनों के बारे में दोनों सभाएं अंतिम रूप से असहमत होने या दूसरी सभा को विधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना छह मास से अधिक बीत जाने पर लोक सभा का विघटन होने के कारण यदि विधेयक व्यपगत नहीं हो गया है तो राष्ट्रपति संयुक्त बैठक बुलाने के लिए आमंत्रित करने के आशय की अधिसूचना, यदि वे बैठक में है तो संदेश द्वारा यदि वे बैठक में नहीं है तो अधिसूचना द्वारा देगा। राष्ट्रपति ने सभाओं की संयुक्त बैठक संबंधी प्रक्रिया के विनियमन हेतु संविधान के अनुच्छेद 118 के खंड (3) के अनुसार सं...
और पढ़ेंजब कोई विधेयक संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित कर दिया जाए तो वह राष्ट्रपति की अनुमति के लिए उसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति विधेयक पर या तो अनुमति दे सकता है या अपनी अनुमति रोक सकता है या यदि वह धन विधेयक न हो, तो उसे इस संदेश के साथ वापस भेज सकता है कि उस विधेयक या उसके कुछ निर्दिष्ट उपबंधों पर विचार किया जाए या ऐसे संशोधनों के पुर:स्थापन होने की वांछनीयता पर विचार किया जाए जिनकी सिफारिश उसने अपने संदेश में की हो। राष्ट्रपति धन विधेयक पर या तो अनुमति दे सकता है या अपनी अनुमति रोक सकता है। राष्ट्रपति धन विधेयक को पुन:विचार करने हेतु सदन को नहीं लौटा सकता है। राष्ट्रपति संसद द्वारा, निर्धारित विशेष बहुमत से और जहां आवश्यक हो, राज्य विधानमंडलों की अपेक्षित सदस्य संख्या द्वारा अनुसमर्थित...
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